वैदिक गोवंश
भारतीय गोवंश – संक्षिप्त परिचय
आज पूरा विश्व भारतीय गोवंश से परिचित है। भारत में देसी गोवंश का धार्मिक महत्त्व है एवं कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण, आर्थिक एवं आध्यात्मिक उन्नति में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। आयुर्वेद में उत्तम स्वास्थ्य, औषधि निर्माण तथा चिकित्सा विधान में गो उत्पाद के उपयोग की लंबी परंपरा रही है। गो उत्पाद को पंचगव्य ( दूध, दही, घी, गोमय/गोबर एवं गोमूत्र ) के नाम से जाना जाता है। पंचगव्य कई मानव बीमारियों को ठीक करने, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तथा संक्रमण से बचाव करने में सक्षम है। हमारे अधिकांश गोवंश नस्लों में सर्दी, गर्मी, सूखा (draught) आदि सहने की असीम क्षमता हैं।
आज से करीब 150 – 200 सौ वर्ष पूर्व विदेशियों ने हमारे लगभग 300 विशिष्ट एवं उत्कृष्ट नंदी (Bull) एवं दुधारु गोवंश ( गिर, ओंगोले, थारपारकर आदि ) नस्लों को अपने देश ले गए। हमारे उत्कृष्ट गोवंश की नस्लो द्वारा उन्होंने अपने गोवंश की नस्लो में सुधार किया जो आज विदेशों में ब्राह्मण ( Brahaman ) गोवंश के नाम से प्रसिद्ध हं। पश्चिमी देश इन गोवंश द्वारा लाखों डॉलर प्रति वर्ष कमा रहे हैं। ब्राजील की श्वेत क्रांति हमारे गिर नस्ल के गोवंश की ही देन है। पश्चिमी देशों ने अपनेे दोयम दर्जे के गोवंश को महिमा मंडित कर ज्यादा दूध देने वाली बता कर, हमारे देश में निर्यात किया। अपने गोवंश को उन्नत करने के बाद, हमारे उत्कृष्ट गोवंश नस्ल की शुद्धता को नष्ट करना एवं हमें उन पर निर्भर करने की यह एक सोची-समझी योजना थीं। इसी कारण आज हमारे गांव, गौशालाओं आदि सब जगह विदेशी गोवंश संकरण से उत्पन्न गायों की भरमार हो गई है। शुद्ध देसी नस्ल के नन्दी का अभाव हो गया है। अतः आज हमारी प्राथमिकता, अपने विशिष्ट एवं उन्नत गोवंश नस्ल के संरक्षण एवं संवर्धन की है।
सिर्फ भारतीय (वैदिक) गायों की पीठ पर कूबड़ रहता है जिसे विश्व (Zebu) के नाम से जानता है। वैदिक गायों के कूबड़ में एक विशेष नस होती है जिसका नाम सूर्यकेतु नाड़ी है जो सूर्य, चंद्रमा तथा ब्रह्मांड के अन्य प्रकाश तत्व से स्वर्ण ऊर्जा अवशोषित करके, अपने अंदर उत्पन्न होने वाले दूध, रक्त मल-मूत्र आदि मे संप्रेषित कर देती है जिसके कारण से दूध, मक्खन, घी आदि में एक स्वर्णिम आभा पाई जाती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह पाया गया है कि भारतीय गौ वंश का दूध A2 है। A2 बीटा कैसीन प्रोटीन (beta-casein protein) कैल्शियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स को आसानी से पचा देते हैं। जिसके चलते हड्डियां एवं दांत मजबूत होते हैं। A2 दूध मांस पेशियों की क्रिया, ब्लड प्रेशर का नियंत्रण, टिशू एवं कोशिकाओं की वृद्धि तथा अच्छे कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने आदि में सहायक है जो कि एक अच्छे स्वस्थ्य शरीर के निर्माण में जरूरी हैं।
विदेशी गोवंश का दूध A1 है जो कि बीमारियों का घर है। विदेशों में कहीं पर भी दूध पीने का चलन नहीं है; कारण उनके ।1 दूध से लोेग बीमार पड़ जाते हैं। विदेशों में दूध का अधिकांश उपयोग मक्खन, पनीर, चीज आदि में किया जाता है। हम देशी गौवंश दुग्ध सेवन को अमृत तुल्य मानते हैं।
भारत के कुछ गौरवशाली गोवंश नस्लो़ं का परिचय –
गिर
गुजरात के अमरेली, भावनगर, जूुनागढ़ एवं राजकोट जिले का गोधन है। गिर के वन, जहाँ की यह मूल नस्ल है, के नाम से इसका नामकरण है । यह एक लाल रंग का विश्व प्रसिद्व गोधन है । गर्मी, ठंड, तनाव, श्रम, थकान आदि सहने की इसकी अच्छी क्षमता है । इसका मस्तक मध्योन्नत है। उष्ण प्रदेश के विभिन्न रोगों को सहने की अच्छी क्षमता है। अमेरिका,ब्राजील, मेक्सिको व वेनेजुआला ने बड़ी मात्रा में इसको आयात किया है । औसत दुग्ध उत्पादन 2110 लीटर प्रति ब्यांत है । उचित रख रखाव एवं पौष्टिक भोजन मिलने पर 5000 लीटर तक प्रति ब्यांत दूध देती है ।
(साभार – राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड)
राठी
खाना बदोश, मवेशी घुमंतू प्रजाति ’राठ’ के नाम से इस गोधन का नाम करण है। राजस्थान के सूखा क्षेत्र के ग्रामीणों की आजीविका (रोजगार) का यह मुख्य साधन है। बीकानेर जिले की लुणकरण तहसील में यह मुख्य रूप से केन्द्रित है जो कि राठी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है । बीकानेर, जैसलमेर एवं गंगानगर के मरूस्थल क्षेत्र का यह गोधन है। यह एक अच्छी दूध देने वाली, भूरे एवं काला रंग की तथा सफेद एवं भूरे धब्बों वाली नस्ल है । 1062 लीटर से 2810 लीटर तक प्रति ब्यांत दूध देती है । चयनित गोधन अच्छे रख रखाव एवं पौष्टिक आहार मिलने पर 4800 लीटर तक प्रति ब्यांत दूध दे देती है ।
(साभार – राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड)
साहीवाल
पंजाब (पाकिस्तान) के मोण्टगुमरी जिला के साहीवाल क्षेत्र के नाम से इसका नाम करण है । पंजाब के अमृतसर व फिरोजपुर जिलांे एवं राजस्थान के गंगानगर जिला के भूरा लाल रंग का यह गोधन है । फिरोजपुर जिला के फाजिलका एवं अबोहर शहर में इस प्रजाति कीे शुद्ध ;च्नतमद्ध नस्ल अच्छी संख्या में उपलब्ध है । भारत की दूध देने वाली सबसे अच्छी नस्लों मे से यह भी एक है । इसकीे विशेषताओं से प्रभावित होकर आस्ट्रेेलिया ने बड़ी मात्रा में इसका आयात किया ह। औसत दूध प्रति ब्यांत 2325 लीटर है । चयनित गोधन, अच्छे रख रखाव एवं पौष्टिक आहार मिलने पर प्रति बियान 6000 लीटर ंतक दूध देने का इसका रिकार्ड है ।
(साभार – राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड)
थारपारकर
राजस्थान के थार मरूस्थल के नाम से इसका नामकरण है । गुजरात के कच्छ जिला एवं राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर एवं जोधपुर जिले का गोधन है । इसमें गर्मी सहन करने एवं रोग प्रतिरोध की असीम क्षमता है । सूखा एवं चारे की कमी के समय भी, यह छोटी छोटी झाड़ियों (सेवण घास) पर निर्भर रह कर अपना जीवन यापन अच्छी तरह करते हुए, उचित मात्रा ( औसत 1750 लीटर प्रति बियान ) में दूध देती है । अच्छे पशुधन, उचित रख रखाव एवं पौष्टिक आहार मिलने पर प्रति ब्यांत 3000 लीटर से अधिक दूध देती है ।
(साभार – राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड)
ओंगोले
आंध्र प्रदेश के ओंगोले क्षेत्र की यह नस्ल है। अपनी सहनशील प्रवृत्ति, मजबूती, रोग प्रतिरोधक क्षमता, सूखा एवं गर्मी सहने की ताकत एवं न्यूनतम संसाधनों में भी जीवन यापन करने आदि की असीम क्षमता के कारण विदेशों में काफी लोकप्रिय है । यह सामान्यतः करीब 800 लीटर दूध प्रति ब्यांत देती है। यह अपनी साही चाल, बड़े पंखे की तरह भारी आकर्षक गलकंबल तथा ठीगने, गठीले सींग व सफेद रंग द्वारा आसानी से पहचानी जाती है।
(साभार – राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड)
भारत के कुछ छोटे कद के गौरवशाली गोवंश –
भारत में सामान्य रूप से कुछ छोटे कद के बोने गोवंश पाए जाते हैं जिनका धार्मिक महत्व है। इन गोवंश में सूखा, गर्मी सहने की असीम क्षमता है। इनके दूध देने की क्षमता के मुकाबले भोजन ग्रहण करने की मात्रा काफी कम है।
पुंगनूर
आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिला के पुंगनूर तहसील के सीमित क्षेत्र का गोवंश है। यह आंध्र प्रदेश का छोटे कद का गौरवशाली गौवंश है। इसकी ऊंचाई 70 से 90 सें. मी. एवं वजन 115 से 200 किलो तक होता है। सूखा, अकाल यह आसानी से सह लेता है। भोजन के रूप में सूखे चारे द्वारा भी यह फलने फूलने में समर्थ है एवं अपना जीवन यापन कर लेता है। औसत 3.5 लीटर दूध प्रति दिन देता है। यह नश्ल विलुप्त होने की कगार पर है। आंध्र प्रदेश चित्तूर जिले का पशुधन रिसर्च सेंटर, इस नश्ल का संरक्षण एवं संवर्धन कर रहा है। यह रिसर्च सेंटर श्री वेंकटेश्वरा वेटरनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में इसी पुंगनूर गोवंश का दूध अर्पित किया जाता है।
वेचुर
यह केरल प्रदेश के कोट्टयम जिले की एक छोटी जगह, वेचूर का गोवंश है। विश्व का यह सबसे छोटा गोवंश माना जाता है। इसकी औसत लंबाई 124 सेंटीमीटर एवं ऊंचाई 87 सेंटीमीटर है। यह गोवंश हल्का लाल, काला एवं पीलापन लिए हुए बदामी तथा सफेद रंग का होता है। यह औसत 561 लीटर दूध प्रति ब्यान देती है एवं दूध में वसा की मात्रा 4.7 से 5.8 प्रतिशत तक रहती है।
बद्री (पहाड़ी गौवंश)
पहाड़ी ‘बद्री‘ गौवंश के दूध में 90% A2 बीटा कैसीन प्रोटीन (beta-casein protein) एवं 4 परसेंट से अधिक की मात्रा में वसा (fat) के पाये जाने पर सरकार तथा जन साधारण में इस गौवंश के प्रति रूझान बढा़ है। बद्री गौवंश उत्तराखंड राज्य की पहली प्रमाणित देशी पशु नस्ल है। इसके पंचगव्य की महत्ता के कारण आज सम्पूर्ण उत्तराखंड जैविक कृषि में अग्रणीय होने की ओर अग्रसर है। इसके संरक्षण एवं संवर्धन के विशेष प्रयास हो रहे हैं। उत्तराखंड के नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, पौड़ी गढ़वाल, टेहरी गढ़वाल, रूद्र प्रयाग, उत्तरकाशी एवं चमोली जिले का गौवंश है। पहाड़ों की ढलान पर यह आसानी से विचरण कर, चर लेती है। यह नस्ल, विभिन्न काली, भुरी, लाल, सफेद एवं ग्रे रंग में पाई जाती है। इसकी अधिकतम लंबाई 100 एवं ऊंचाई 105 सें.मी. है। प्रति बियान 500 से 650 ली. तक दूध देती है। दूध में वसा की मात्रा अधिक रहने से इसका घी, आहार के लिहाज से श्रेष्ठ माना जाता है।
पंजीकृत देसी गोएवंश नस्ल की सूची – ICAR-NBAGR
क्रमांक सं | नस्ल | प्रजनन पथ | उपयोग |
---|---|---|---|
1 | अमृतमहल | कर्नाटक | परिवहन और भारवाही |
2 | बछौर | बिहार | भारवाही |
3 | बद्री | उत्तराखंड | दूध और भारवाही |
4 | बरगुर | तमिलनाडु | भारवाही |
5 | बेलही | हरियाणा और चंडीगढ़ | दूध एवं भारवाही |
6 | बिंझारपुरी | ओडिशा | दूध और भारवाही |
7 | डागरी | गुजरात | भारवाही |
8 | डांगी | महाराष्ट्र | भारवाही |
9 | देवनी | महाराष्ट्र और कर्नाटक | दूध और भारवाही |
10 | गंगातिरी | बिहार और उत्तर प्रदेश | दूध और भारवाही |
11 | गाओलाओ | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश | दूध और भारवाही |
12 | घुमुसरी | ओडिशा | भारवाही |
13 | गिर | गुजरात | दूध |
14 | हल्लीकर | कर्नाटक | भारवाही |
15 | हरियाणा | हरियाणा | दूध और भारवाही |
16 | हिमाचली पहाड़ी | हिमाचल | दूध और भारवाही |
17 | कांगयम | तमिलनाडु | भारवाही |
18 | कांकरेज | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवाही |
19 | केनकठा | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश | भारवाही |
20 | खरियार | ओडिशा | भारवाही |
21 | खेरीगढ़ | उत्तर प्रदेश | भारवाही |
22 | खिल्लर | महाराष्ट्र और कर्नाटक | भारवाही |
23 | कोकण कपिला | महाराष्ट्र | भारवाही |
24 | कोसली | छत्तीसगढ़ | भारवाही |
25 | कृष्णा घाटी | कर्नाटक और महाराष्ट् | भारवाही |
26 | लद्दाखी | जम्मू-कश्मीर | भारवाही |
27 | लखीमी | असम | दूध और भारवाही |
28 | मलनाड गिद्दा | कर्नाटक | भारवाही |
29 | मालवी | मध्य प्रदेश | भारवाही |
30 | मेवाती | राजस्थान – हरियाणा-उत्तर प्रदेश | भारवाही |
31 | मोटू | ओडिशा | भारवाही |
32 | नागोरी | राजस्थान | भारवाही |
33 | नारी | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवाही |
34 | निमाड़ी | मध्य प्रदेश | भारवाही |
35 | ओंगोल | आंध्र प्रदेश | दूध और भारवाही |
36 | पोंवार | उत्तर प्रदेश | भारवाही |
37 | पोडा थिरुपु | तेलंगाना | दूध और भारवाही |
38 | पुलिकुलम ु | तमिलनाडु | भारवाही एवं खेल |
39 | पुंगनूर | आंध्र प्रदेश | दूध और भारवाही |
40 | पूर्णिया | बिहार | दूध और भारवाही |
41 | राठी | राजस्थान | दूध |
42 | लाल कंधारी | महाराष्ट्र | भारवाही |
43 | लाल सिंधी | केवल सुनियोजित गोशाला | दूध |
44 | साहीवाल | पंजाब और राजस्थान | दूध |
45 | श्वेता कपिला | उत्तर और दक्षिण गोवा | दूध |
46 | सिरी | सिक्किम और पश्चिम बंगाल | भारवाही |
47 | थारपारकर | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवाही |
48 | थूथो | नागालैंड | भारवाही |
49 | अम्ब्लाचेरी | तमिलनाडु | भारवाही |
50 | वेचुर | केरल | दूध और खाद |